कैसे हम विपरीत परिस्थितियों में भी खुद पर यकीन कर के आगे बढ़ सकते हैं,
कैसे हम विपरीत परिस्थितियों को पलट कर जीत हासिल कर सकते हैं,
कैसे हमारी हार, जीत, भगवान नहीं बल्कि हम खुद तय करते हैं ।
इन सारे सवालों के जवाब आपको इस छोटी सी प्रेरक कहानी द्वारा समझ आ जायेंगे ।
यह कहानी आपके जीवन में हर वक्त उपयोगी साबित होगी और जब भी आपका आत्मबल (Self-belief) कम होने लगे, जब भी आपको लगे की अब यह आपके बस की बात नहीं है तब एक बार जरूर पढ़े, यह आपके आत्मबल (Self-belief) को ऊपर उठाने के लिए बहुत ही सहायक होगी ।
प्रभासपुरम नाम का एक वैभवशाली नगर था और उसके राजा थे प्रभास कुमार। प्रभास कुमार बहुत ही चतुर, साहसी राजा और वीर योद्धा थे ।
उस नगर की प्रजा बहुत ही सुखी संपन्न और समृद्ध थी इस वैभव के लालच में आकर एक बार राजा भीमसिंह ने इस छोटे से नगर पर हमला कर दिया ।
भीमसिंह के पास बहुत बड़ा सैन्य बल था, भीमसिंह के पास तकरीबन 1 लाख के आसपास सैनिक थे और इस तरफ प्रभास कुमार के पास सिर्फ 25 हजार सैनिक ही थे ।
प्रभासकुमार के पास भलेही सैन्य बल कम था लेकिन वह एक सच्चा योद्धा था इसलिए वे इस विपत्ति का सामना करने अपने पूरे सैन्य बल के साथ रणभूमि में कूद पड़े ।
लेकिन प्रभास कुमार की सेना भीमसिंह के महाकाय सैन्य के सामने टूटने लगी, बिखरने लगी । प्रभास कुमार की सेना ने जैसे-तैसे कर के पहला दिन ख़तम किया लेकिन उनके कई सारे सैनिक मारे जा चुके थे ।
प्रभासकुमार का सैन्य बल मानसिक तौर पर बिलकुल टूट चुका था, हार चुका था और वे अब यह मानने लगे थे की कल के दिन वे भीमसिंह के महाकाय सेना के सामने टिक नहीं पाएँगे और अब इस हार को टालना असंभव है ।
प्रभासकुमार एक राजा होने के साथ एक वीर योद्धा भी थे वे इतनी आसानी से हार मानने वाले नहीं थे, वे जानते थे की सामने वाले के पास चाहे हमसे चार गुना ही सैनिक क्यों न हो लेकिन अगर हम जीत के विश्वास के साथ लड़ेंगे, अपने खुद पर विश्वास कर के लड़ेंगे तो अवश्य यह जंग जीती जा सकती हैं।
लेकिन प्रभास कुमार का सैन्य मनोबल खो चुका था, वे मानसिक तौर पर हार स्वीकार कर चुके थे और अगर वे इसी हार के डर के साथ कल मैदान में जाएँगे तो उनका हार नानिश्चित है यह प्रभासकुमार अच्छे से जानते थे । इसलिए इस आपत्ति को पार करने के लिए राजा प्रभास कुमार ने एक युक्ति करी, उन्होंने सेनापति को बुलाया और बताया की मैं इस विपत्ति का हम कैसे सामना करे उसका हल ढूंढने हमारे गुरु महाराज शिवप्रकाश के पास जा रहा हूँ, यह कह कर वे जंगल की और चले गए जहाँ शिवप्रकाश का आश्रम था ।
और फिर आधी रात को एक चमचमाती तलवार और जल का भरा बड़ा घड़ा अपने साथ लेकर वापस लौट कर आयें और आते ही उन्होंने सेनापति को आदेश दिया की हमारे योद्धाओं को अभी इसी वक्त यहाँ बुलाये जाए ।
सभी लोग हैरान थे की राजा ने उन्हें आधी रात में क्यों इक्कठा किया है, सभी के इक्कठे हो जाने के बाद राजा ने घोषणा की मेरे वीर योद्धाओं अब हमारी कल रणभूमि में विजय निश्चित हैं ।
फिर आगे उन्होंने बताया कि मैं हमारी जीत की मनोकामना करने के लिए गुरूजी के पास गया था और उन्होंने मुझे बताया है कि भगवान ने यह तय कर लिया है की इस युद्ध में प्रभासपुरम की ही जीत सुनिश्चित है ।
उन्होंने मुझे भगवान के आशीर्वाद के तौर पर एक अजेय तलवार और यह पवित्र जल दिया है और इस जल को हमारे सभी युद्ध शस्त्र पर छिटक दें फिर हमारे यह सभी शस्त्र भी अजेय हो जाएँगे ।
इस घोषणा के बाद सभी सैनिकों ने एक के बाद एक अपनी तलवार उस पानी के बर्तन में डुबो दी और अब सभी सैनिकों में गजब का आत्मविश्वास (Self-confidence) जाग गया और वे तन मन से अजेय महसूस करने लगे ।
अब उन्हें पक्का विश्वास था की कल रणभूमि में वे दुश्मनों को अपनी अजेय तलवारों से चीर देंगे और यह युद्ध जीत जाएँगे ।
और दूसरे दिन ऐसा ही हुआ, प्रभासपुरम के सभी योद्धा जी जान से लड़े, ऐसे लड़े जैसे वे कभी हार ही नहीं सकते ।
एक-एक योद्धा ने भीमसिंह के दस-दस योद्धाओं को चीर फाड़ दिया और हारी हुई जंग जीत ली ।
सब नगर वापस लौटे सब ने पूरी रात खूब जश्न मनाया ।
दूसरे दिन गुरूजी ने भी जीत की खबर सुनी तो राजा को बधाई देने नगर में आयें ।
सेनापति और सैनिकों ने गुरूजी को देखते ही गुरूजी की जय जयकार करने लगे और गुरूजी का इस आपत्ति से बचाने के लिए आभार प्रकट करने लगे ।
यह सुनकर गुरूजी बोले कि यह जीत तो आपकी वजह से हुई है, आपने ही इस विपत्ति का बड़े साहस के साथ रणभूमि में सामना किया है इसलिए यह जीत मेरी वजह कैसे हो सकती है ।
सेनापति ने यह सुनते ही कहाँ, नहीं-नहीं गुरूजी यह जीत सिर्फ और सिर्फ आपके अजेय प्रसाद की वजह से हुई हैं, अगर आप उस वक्त हमें वह अजेय पवित्रजल नहीं देते तो उसके बिना हमारे सारे शस्त्र बेकार थे लेकिन आपके उस आशीर्वाद से हमारे सब शस्त्र अजेय हो गए इसलिए यह जीत आपकी हैं ।
गुरूजी सब समझ गए की क्या हुआ हैं ।
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहाँ कि यह जीत न मेरी है न तुम्हारी, यह जीत हमारे राजा प्रभासकुमार की हैं और आपके आत्मबल (Self-belief) की हैं ।
सेनापति ने पूछा वो कैसे गुरूजी?
फिर गुरूजी ने बताया कि वास्तव में नही आपके महाराज प्रभास कुमार मेरे पास आयें है और नही मैंने कोई आशीर्वाद दिया है ।
उन्होंने आपके मनोबल, आत्मबल (Self Confidence) को उठाने के लिए ही यह तरकीब अपनाई हैं ।
सेनापति ने फिर से पूछा तो क्या हमारा जितना भगवान का विधान नहीं था? तो क्या यह भी भगवान ने सुनिश्चित नहीं किया था की हम यह जंग जीतेंगे या नहीं?
गुरूजी ने बताया बिलकुल नहीं, आपकी जीत और हार भगवान नहीं बल्कि आप स्वयं सुनिश्चित करते हैं, जैसे की आप रणभूमि में बिना डर के, मनसे जीत सुनिश्चित समझ कर लड़े इसलिए जीते ।
आप इसलिए जीते की आपके राजा ने बड़ी चतुराई के साथ आपमें जितने का साहस (Courage), आत्मबल (Self Confidence) और विश्वास भर दिया था इसलिए यह जीत आपके राजा की और आपके मनोबल (Self-belief) की हैं ।
यह कहानी आत्मबल (Self-belief), मनोबल (Morale) और आत्मविश्वास (Self-confidence) का एक बेहतरीन उदाहरण है और इस कहानी से यह स्पष्ट होता है की हमारी जीत हमारे ही हाथों में है, न की किसी किस्मत की लकीरों में ।
हमारी जीत हमारे विश्वास में है, अगर हम सोचते है की हम यह कर सकते तो अवश्य कैसे भी कर के वह कर जायेंगे और अगर मन से ही हारे हुए हैं, पहले से ही परिस्थितियों के सामने घुटने टेक दिए हैं तो फिर हार भी सुनिश्चित हैं ।
ऐसे कही उदाहरण है जहाँ पे नामुमकिन लगने वाले काम भी अपने अंदर के विश्वास (Self-belief) के द्वारा इंसान ने मुमकिन कर दिखाए हैं।
इतिहास में ऐसे कही सारे उदाहरण स्वर्ण अक्षरों से लिखे हैं, जहाँ पर इंसान ने सिर्फ और सिर्फ अपने आत्मबल (Self Confidence) , मनोबल (Morale) और खुद पर विश्वास (Self-belief) कर के जीत हासिल करी हैं ।
हमेशा अपने आप पर विश्वास करें कि आप भी जो चाहे वह कर सकते हैं अपने मनोबल (Morale), आत्मबल (Self Belief) को ऊँचा उठाए और हमेशा यह यकीन रखे की मैं आम आदमी नहीं बल्कि सुपर पावर से लैस सुपरमैन हूं ।
याद रखिये आपका यही विश्वास, आपका यही नजरिया आप को जीत दिलाएगा आपको चैंपियन बनाएगा ।